खतरनाक स्तर पर पहुंच गया सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल.

खतरनाक स्तर पर पहुंच गया सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल.

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यूनिटी संस्था रेपुरा  द्वारा एक वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें सतत भू- आकृति एवं पारिस्थितिकी समाधान के वरिष्ठ प्रबंधक डॉ एन मनिका और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद कोलकाता के प्रधान वैज्ञानिक डॉ ए के सिंह ने भाग लिया.कार्यक्रम का संचालन प्रोजेक्ट हेड रंजीत कुमार ने किया. वेबीनार में भाग लेते हुए डॉ एन मनिका ने कहा कि पूरी दुनिया में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित हो गया है कि इसके निर्माण में प्रयुक्त रासायनिक पदार्थ समस्त जीव जंतुओं और पर्यावरण के अजैविक घटक जैसे मिट्टी,पानी के लिए अत्यंत नुकसानदेह है. यह इसकी मूल प्रकृति को बदल देता है.जब इसे जलाते हैं तो इसका खतरनाक रसायन वायु के साथ मिश्रित हो जाता है और वायुमंडल को दूषित करता है. उसके बाद हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करने लगता है. यही कारण है कि आज पूरी दुनिया में सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों में वृद्धि देखी जा रही है. चिकित्सीय जगत में इसके लिए चिंता भी जाहिर की जा रही है.अब आम आदमी और सभी सरकारों को चाहिए कि इसके संदर्भ में ठोस रणनीति बनाकर इसके इस्तेमाल को पूर्ण रूप से प्रबंधित करें अन्यथा यह हमारे लिए काल साबित हो सकता है.डॉ एके सिंह ने विकल्प के तौर पर प्राकृतिक रेशों पर आधारित बैग, फाइल,पैकिंग,खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग,बोतल आदि के इस्तेमाल पर बल दिया.उनका कहना था कि पर्यावरणीय और मानवीय स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह अत्यंत ही सुरक्षित है. सबसे बड़ी बात है कि बायोडिग्रेडेबल है. यानी इसे अगर मिट्टी में छोड़ दिया जाए तो इसके सभी तत्व मिट्टी की प्रकृति में मिल जाते हैं और मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने का काम करते हैं.दूसरा फायदा है कि इससे नेचुरल फाइबर की खेती को बढ़ावा मिलेगा और किसानों की आमदनी बढ़ेगी, व्यापार का विकास होगा और इस पर आधारित उद्योगों की स्थापना होगी.इससे देश की अर्थव्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन देखने को मिलेगा.सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हमारे जीवन और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होगा.इसलिए सरकार को उपयुक्त भौगोलिक क्षेत्रों में जूट, पटसन और अन्य रेशेदार फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने की जरूरत है. अंत में संचालक रंजीत कुमार के द्वारा दोनों वैज्ञानिकों को धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम को समाप्त किया गया.