12 अगस्त की रात अनोखी होने वाली है।

12 अगस्त की रात अनोखी होने वाली है। इस दिन आसमान में एक साथ काफी ढेर सारे तारों को टूटते हुए देखा जाएगा। इसे खुली आंखों से देखा जा सकेगा। यूं तो अंधेरा होते ही आसमान में यह रोमांच दिखने लगेगा। शाम होते ही उल्का पिंडों यानी टूटते हुए तारों का दिखना शुरू हो जाएगा, लेकिन रात 2 बजे से भोर तक यह सबसे ज्यादा दिखाई देगा।

                                      दुनियाभर के लिए 12 अगस्त की रात अनोखी होने वाली है।

इस दिन आसमान में एक साथ काफी ढेर सारे तारों को टूटते हुए देखा जाएगा। इसे खुली आंखों से देखा जा सकेगा। यूं तो अंधेरा होते ही आसमान में यह रोमांच दिखने लगेगा। शाम होते ही उल्का पिंडों यानी टूटते हुए तारों का दिखना शुरू हो जाएगा, लेकिन रात 2 बजे से भोर तक यह सबसे ज्यादा दिखाई देगा। 

इस दिन एक घंटे में 60 से 100 उल्काओं का हम आसमान में दीदार कर सकेंगे। पृथ्वी से 100 किलोमीटर ऊपर 60 किमी प्रति सेकेंड की स्पीड से पूंछ वाली चमकती उल्काएं दिखेंगी। हालांकि, गोरखपुर नक्षत्रशाला के खगोलविद अमर पाल सिंह का कहना है कि पृथ्वी से हमें आसमान में तारे टूटने जैसा कुछ दिखाता है। असलीयत में यह उल्का वृष्टि होती है। जो हमें तारे टूटने का अनुभव कराती है।

पहले जानते हैं, क्या होता है टूटता हुआ तारा? सौर मंडल के ग्रहों के बीच अंतरिक्ष में पत्थर और लोहे के अनगिनत छोटे-छोटे कंकड़ या कण मौजूद हैं। ऐसा कोई कण जब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में आने पर तीव्र वेग से पृथ्वी के वायुमंडलीय घर्षण के कारण रात के समय आकाश में क्षण भर के लिए चमक उठता है। इसी को उल्का या टूटता तारा कहा जाता है।

आकाश में दिखेगा मेटियर शॉवर
अमर पाल सिंह ने बताया कि उल्का वृष्टि का संबंध धूमकेतुओं से है। धूमकेतु धूलिकड़ों और बर्फ से बनी गैसों के पिंड होते हैं। यह लंबी दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। इनसे निकले हुए कण इनकी कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं।

जब पृथ्वी किसी धूमकेतु के यात्रापथ से गुजरती है, तब उसके वे कण पृथ्वी के वायुमंडल में घर्षण से जलने लगते हैं। जो उल्काओं के रूप में चमकते हुए दिखते हैं। तब आकाश में हमें उल्का वृष्टि का आकर्षक नजारा दिखाई देता है। इसी को खगोल विज्ञान की भाषा में मेटियर शॉवर या उल्का वृष्टि या आम बोल चाल की भाषा में इसे ही टूटते हुए तारों की संज्ञा दी जाती है।

टेलीस्कोप की नहीं पड़ेगी जरूरत
उल्का वृष्टि को स्विफ्ट टटल धूमकेतु या इसे 109 पी भी कहा जाता है। अगस्त महीने में होने वाली उल्का वृष्टि को परसीड मेटियर्र शॉवर नाम दिया गया है। क्योंकि, यह आकाश में एक बिंदु से आती हुई दिखाई देती है। जिसे रेडियंट प्वाइंट कहा जाता है। जो कि पर्सीड तारामंडल की तरफ से शुरू होता है। आकाश में यह हर तरफ दिखेगा। इसे देखने के लिए किसी तरह के टेलीस्कोपिक या अन्य किसी भी उपकरण की जरूरत नहीं होगी।

अंधेरे में दिखेगा रोमांचकारी नजारा
12 अगस्त की रात बादल साफ रहने पर खुली आंखों से घर से ही इस रोमांच का मजा आप ले सकेंगे। इसे देखने के लिए किसी साफ जगह पर जाएं जहां अधिक लाइट और पॉल्यूशन न हो। अंधेरे में यह नजारा और अच्छे से दिखेगा।


टेलीस्कोप की नहीं पड़ेगी जरूरत
उल्का वृष्टि को स्विफ्ट टटल धूमकेतु या इसे 109 पी भी कहा जाता है। अगस्त महीने में होने वाली उल्का वृष्टि को परसीड मेटियर्र शॉवर नाम दिया गया है। क्योंकि, यह आकाश में एक बिंदु से आती हुई दिखाई देती है। जिसे रेडियंट प्वाइंट कहा जाता है। जो कि पर्सीड तारामंडल की तरफ से शुरू होता है। आकाश में यह हर तरफ दिखेगा। इसे देखने के लिए किसी तरह के टेलीस्कोपिक या अन्य किसी भी उपकरण की जरूरत नहीं होगी।

अंधेरे में दिखेगा रोमांचकारी नजारा
12 अगस्त की रात बादल साफ रहने पर खुली आंखों से घर से ही इस रोमांच का मजा आप ले सकेंगे। इसे देखने के लिए किसी साफ जगह पर जाएं जहां अधिक लाइट और पॉल्यूशन न हो। अंधेरे में यह नजारा और अच्छे से दिखेगा।