विदुर-उद्धव मिलन प्रसंग सुनकर श्रद्धालु हुए भावविभोर

भागवत कथा का विस्तार से उल्लेख करते हुए मुक्ति के मार्ग बताएं। अपने मुखारविद से आचार्य ने कहा कि जीवो को अपनी इंद्रियों का प्रयोग भगवान के लिए ही करना चाहिए, उठते-बैठते अथवा कोई भी कार्य करते वक्त भगवान श्री कृष्ण को याद करते रहना चाहिए। प्राणी जो श्रृंगार अपने लिए करता है, वह उसके पतन का कारण बन जाता है, इसलिए प्रत्येक इंसान को सजना सवरना भी भगवान के लिए ही चाहिए और प्रत्येक कार्य करते वक्त यह ध्यान में रखना चाहिए, प्रिभु मुझे हर समय देख रहे हैं। जिस भी परिवार में ऐसी प्रवृत्ति के लोग होंगे वह परिवार दिन प्रतिदिन तरक्की करेगा। महाराजा विभीषण तथा विदुर का उदाहरण देते हुए पूज्य आचार्य जी ने कहा कि जब तक विभीषण लंका में थे तब तक महाबली रावण का डंका तीनों लोगों में बचता था, यही हाल महात्मा विदुर जी का कौरव कुल के साथ रहने तक का था। जैसे ही इन दोनों ने अपने स्थानों को तयागा तो लंका और हस्तिनापुर का विनाश शुरू हो गया। महाराज जी ने कहा कि जो कान कभी भागवत कथा नहीं सुनते वह सर्प के समान हैं और जीवा भगवान का नाम नहीं लेती वह मेढ़क के समान है। साधक को एकाग्र चित होकर सर्वप्रथम भगवान के श्री चरणों का ध्यान करना चाहिए, फिर नखों का फिर लाल लाल तलवे घुटने झंगा नाभि ग्रीवा मुखारविद कमल चक्षु और घुंघराले केश का ध्यान करते हुए प्रभु की भक्ति में डूब जाना चाहिए। यही असल में मुक्ति का मार्ग है।