प्राचीन ' शंख भस्म ' अब नैनोमेडिसिन साबित

प्राचीन  ' शंख भस्म ' अब नैनोमेडिसिन साबित
प्राचीन  ' शंख भस्म ' अब नैनोमेडिसिन साबित

प्राचीन आयुर्वेदिक शंख भस्म अब नैनोमेडिसिन साबित

                              (डॉ श्वेता सिन्हा ,असिस्टेंट प्रोफेसर,एप्लाइड साइंस ,सीतयोग इंस्टीच्यूट आफ टेक्नालॉजी )           

आयुर्वेद " जीवन के प्राचीन विज्ञान " के साथ खड़ा है और यह प्रकृति से प्राप्त एक औषधीय विज्ञान है जो जीव और स्वास्थ्य के लिए जरुरी  माना जाता है। हम उसी शंख के भष्म की बात करने जा रहे हैं जो समुद्र या समुद्री क्षेत्रों में पाए जाने वाले शंख होते हैं जिनका उपयोग पूजा में किया जाता है। आयुर्वेद में भस्म का अर्थ "पवित्र भस्म" होता है जो सुपरफाइन नैनो क्रिस्टलीय होता है।
शंख भस्म तैयार करने के लिए भस्मीकरण नामक आयुर्वेदिक प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है । शंख भस्म ( पाउडर ) को एलोवेरा और छाछ के साथ मिलाकर 700 -800 डिग्री सेल्सियस पर बहुत उच्च तापमान पर गर्म किये जाने पर बनता है । यह प्रकृति में क्षारीय है और दस्त, पेट दर्द, उल्टी के उपचार के लिए उपयोग माना जाता है। डकार न आना सहित तमाम पेट और पाचन के दोषों को दूर करता है यह शंख भष्म। 
लक्षण वर्णन के आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों को नियोजित करके शंख भस्म को हम एक उप[योगी नैनोमेडिसिन के रूप में समझ सकते हैं। एक्स-रे डिफ्रेक्टोमीटर यह खुलासा करता है कि इसका आकार लगभग 73 एनएम है। अपने नैनोमेट्रिक आकार के कारण, यह शंख भष्म सामान्य भष्म  से अधिक प्रभावी और भौतिक गुणों में अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
वर्तमान शोध से एक नई बात साबित होती है कि बड़ी आबादी के लाभ के लिए पर्यावरण के अनुकूल दृष्टिकोण का उपयोग करके कम लागत वाली आयुर्वेदिक नैनोमेडिसिन तैयार की जा सकती है।
   इस तरह शंख भष्म की औषधीय महत्ता इस दौर में भी प्राचीन रुप से ही प्रमाणित होती है।